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Category | : BACHELOR'S (HONOURS) DEGREE PROGRAMMES |
Sub Category | : स्नातक उपाधि (ऑनस) हिंदी (बी ए एच डी एच)(BAHDH) |
Products Code | : 6.10-BAHDH-AASI |
HSN Code | : 490110 |
Language | : English, Hindi |
Author | : BMAP EDUSERVICES PVT LTD |
Publisher | : BMAP EDUSERVICES PVT LTD |
University | : IGNOU (Indira Gandhi National Open University) |
Pages | : 20-25 |
Weight | : 157gms |
Dimensions | : 21.0 x 29.7 cm (A4 Size Pages) |
BPCG 176 जेंडर का मनोविज्ञान पाठ्यक्रम का उद्देश्य यह समझाना है कि जेंडर की मानसिक प्रक्रियाओं और मनोविज्ञान का सामाजिक और व्यक्तिगत जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ता है। जेंडर एक समाजिक और सांस्कृतिक निर्माण है, जो मनोविज्ञान के दृष्टिकोण से हमारी सोच, पहचान और समाज में हमारे स्थान को प्रभावित करता है। इस असाइनमेंट समाधान में हम देखेंगे कि जेंडर पहचान, जेंडर भेदभाव, और जेंडर भूमिकाएं कैसे मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से समझी जाती हैं और मनोविज्ञान के सिद्धांत जेंडर की विविधताओं को कैसे प्रकट करते हैं।
जेंडर केवल पुरुष या महिला होने का सवाल नहीं है, बल्कि यह एक सामाजिक और सांस्कृतिक निर्माण है, जो हमारे व्यक्तिगत विचारों, व्यवहार, और समाज में भूमिका को प्रभावित करता है। मनोविज्ञान में जेंडर का अध्ययन यह समझने के लिए किया जाता है कि कैसे यह मानसिकता और मानसिक प्रक्रियाओं को प्रभावित करता है। जेंडर का मनोविज्ञान यह अध्ययन करता है कि कैसे हमारे मानसिक जीवन और सोच में जेंडर की भूमिका है और जेंडर पहचान कैसे बनती है।
जेंडर पहचान (Gender Identity) एक व्यक्ति की आंतरिक समझ होती है कि वे पुरुष, महिला, या अन्य के रूप में अपने जेंडर को महसूस करते हैं। यह पहचान समाज, परिवार, और सांस्कृतिक मान्यताओं से प्रभावित होती है। जेंडर की भूमिका (Gender Roles) समाज में पुरुषों और महिलाओं से जुड़ी मान्यताओं और अपेक्षाओं के आधार पर बनती है। ये भूमिकाएं सामाजिक दबाव, परंपराएं, और संस्कारों द्वारा निर्धारित की जाती हैं।
जेंडर भेदभाव एक सामाजिक समस्या है जिसमें एक जेंडर को दूसरे जेंडर के मुकाबले कमतर या अधिकारों से वंचित किया जाता है। मनोविज्ञान में यह देखा गया है कि पुरुष प्रधान समाज में महिलाओं को अक्सर कमतर समझा जाता है, और यह सोच कई मनोवैज्ञानिक और सामाजिक प्रभावों का परिणाम होती है। जेंडर भेदभाव के कारण महिलाओं और पुरुषों दोनों के मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है, जैसे कम आत्मसम्मान, तनाव और मनोवैज्ञानिक विकार।
जेंडर पहचान एक व्यक्ति के मन में यह आंतरिक समझ होती है कि वे अपने जेंडर के संदर्भ में खुद को किस रूप में देखते हैं। यह पहचान जन्म के समय निर्धारित नहीं होती, बल्कि यह एक मानसिक विकास के परिणामस्वरूप बनती है। जेंडर पहचान का मनोविज्ञान यह समझता है कि कैसे यह पहचान विकसित होती है, कैसे व्यक्ति अपने जेंडर की भूमिका को समाज में निभाता है, और यह मानसिक स्थिति किस हद तक सामाजिक और सांस्कृतिक कारकों से प्रभावित होती है।
जेंडर डिस्फोरिया (Gender Dysphoria) एक मानसिक स्थिति है, जिसमें एक व्यक्ति अपने जेंडर से असंतुष्ट होता है और इसे बदलने की इच्छा रखता है। यह मनोवैज्ञानिक रूप से चुनौतीपूर्ण हो सकता है और जेंडर की पहचान पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है।
समाज में जेंडर की भूमिकाओं का विकास सांस्कृतिक और सामाजिक मान्यताओं के आधार पर होता है। यह भूमिकाएं पारंपरिक और समाज द्वारा निर्धारित होती हैं। उदाहरण के तौर पर, कुछ समाजों में यह माना जाता है कि महिलाएं घरेलू कार्य करती हैं, जबकि पुरुष को बाहर काम करने के लिए भेजा जाता है। इन भूमिकाओं को सामाजिक अपेक्षाएँ कहा जाता है, जो अक्सर मानसिक स्वास्थ्य और स्वतंत्रता को प्रभावित करती हैं।
जेंडर भूमिकाएं व्यक्तियों को विशिष्ट कार्य करने और सोचने के तरीके सिखाती हैं। समाज की यह अपेक्षाएँ बच्चों को छोटे से ही सिखाई जाती हैं, और सामाजिक दबाव से बचना मुश्किल हो सकता है। इसके परिणामस्वरूप, लोग अपनी असली जेंडर पहचान को दबा सकते हैं और मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं का सामना कर सकते हैं।
जेंडर समानता वह सिद्धांत है, जिसके अनुसार हर व्यक्ति को उसके जेंडर के आधार पर बराबरी के अधिकार मिलते हैं। यह न केवल सामाजिक न्याय के लिए आवश्यक है, बल्कि मनोवैज्ञानिक कल्याण के लिए भी बहुत महत्वपूर्ण है। जेंडर समानता से लोगों के स्वस्थ मानसिक विकास, आत्म-सम्मान, और सामाजिक समृद्धि को बढ़ावा मिलता है। यदि जेंडर भेदभाव कम होता है, तो मानसिक और सामाजिक स्वास्थ्य में सुधार होता है और मानवाधिकारों का सम्मान होता है।
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